शनिवार, 30 अक्तूबर 2010

और मैं करने लगा प्रेम

करने के लिए
बहुत काम थे
और मैं कर बैठा प्रेम

नहीं करता तो  सुबह दूध ला सकता था
धो सकता था
तीन  दिन से भिगोये कपडे
और  भाजी तरकारी के लिए
जा सकता था हाट  बाजार

नहीं करता प्रेम तो
खेल सकता था दोल्हा-पाती
आजमा  सकता था कबड्डी के दांव
घंटो खेलता ताश के पत्ते
राजा, रानी, चिड़ी और गुलाम 
और सो सकता था घंटों बेफिक्र

लेकिन जब से कर बैठा हूँ प्रेम
कोई मना नहीं करता इन कामों को करने से 
फिर  भी...

अब तुम ही बताओ
प्रेममें डूबा व्यक्ति क्यों नहीं ला सकता दूध
क्यों नहीं धो सकता कपडे
और क्यों भाजी-तरकारी के लिए
नहीं जा सकता हाट -बाजार 'इमलिया'

किसने रोका है उसे
कि वो डाल डाल ना डोले दोल्हा-पाती में
अरे भई!

हम तो चाहते हैं
कबड्डी ही नहीं वो कुश्ती में भी दांव  आजमाए
ताश  ही नहीं शतरंज भी खेले
और सोये वर्षों

लेकिन इतना तो है जरुर
की दुनियादारी में थोड़ा  सा वक्त जरुर निकाल ले
बैठ कर करने के लिए प्रेम

शुक्रवार, 22 अक्तूबर 2010

दोस्तों के लिए

सुनो दोस्तों
अगर तुम करते हो प्रेम
चाहते हो खुद से ज्यादा किसी और को
गुज़ार देते  हो इन्तेज़ार में
बस स्टैंड पर अपना कीमती वक्त

जिसके अहसास के बिना भी
तुम्हारी देह में भर जाती है सिहरन
जो समाई रहती है तुम्हारी सांसों में
तैरती रहती जो तिम्हारी निगाहों में

जिसे देख लेते हो तुम
अमावस की स्याह रात में
और हवा की गंध जिसके आने की आहात देती है तुम्हें

तो उसके लिए और अपने प्रेम के लिए
ठोकर जरुर मारना
रस्मो रिवाजों को

वरना
तमाम उम्र करते रहोगे अफसोस
और मरने के समय कहोगे
काश ! मैंने अब्बा की बात ना मानी होती.