शुक्रवार, 22 अक्तूबर 2010

दोस्तों के लिए

सुनो दोस्तों
अगर तुम करते हो प्रेम
चाहते हो खुद से ज्यादा किसी और को
गुज़ार देते  हो इन्तेज़ार में
बस स्टैंड पर अपना कीमती वक्त

जिसके अहसास के बिना भी
तुम्हारी देह में भर जाती है सिहरन
जो समाई रहती है तुम्हारी सांसों में
तैरती रहती जो तिम्हारी निगाहों में

जिसे देख लेते हो तुम
अमावस की स्याह रात में
और हवा की गंध जिसके आने की आहात देती है तुम्हें

तो उसके लिए और अपने प्रेम के लिए
ठोकर जरुर मारना
रस्मो रिवाजों को

वरना
तमाम उम्र करते रहोगे अफसोस
और मरने के समय कहोगे
काश ! मैंने अब्बा की बात ना मानी होती.

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